Friday 27 November 2015

सोच बदलेगी तो जीवन बदलेगा(SOCH BADALEGI TO DUNIA BADALEGI)




सोच बदलेगी तो जीवन बदलेगा
पार्थ नाम के एक व्यकि ने बड़े उत्साह से सूखे मेवों का व्यवसाय शुरू किया, मगर घाटे के कारण 5-6 महीने में ही उस काम को बंद  करना पड़ा।
वह बड़ा उदास हुआ और काफी समय बीत जाने पर भी उसने  दूसरा कोई काम शुरू नही किया तथा स्वयं को निराशा व हताशा के चिंतन से सराबोर कर दिया।
इसका कारण यह था की कोई भी बड़ा काम शुरू करने से अब वह डर गया था ;
क्योंकि उसने अपने काम में बहुत घाटा हुआ था और दोबारा घाटा सहने की स्थिति मे वह नही था। पार्थ की इस स्थिति का पता उसके गुरु को आचार्य श्रीवत्स कृष्णन को लगा । उन्होंने एक दिन पार्थ को अपने पास बुलाया और उसका हाल चाल पूछा। पार्थ ने कहा - मैने बहुत आशा के साथ अपना व्यवसाय प्रारम्भ किया था। उसमे घाटे के बाद अब मेरा आत्मविश्वास लड़खड़ा गया है और कोई नया कार्य करने का साहस ही नही होता। मुझे समझ में नही आ रहा की में नाकाम कैसे हो गया ? अब मेरा काम में ही मन नही लगता ।
आचार्य श्रीवत्स उसे अपने बगीचे में ले गए और बोले - टमाटर के इस मरे हुए पौधे को देखो। पौधे को देख रहे पार्थ से गुरु ने कहा - मेने जब इसे  बोया था तो हर वह चीज़ मेने की, जो इसके लिए जरुरी थी। इसे खाद पानी देने के साथ ही इसकी हिफाजत भी की, फिर भी यह मर गया। आखिर क्यों, क्योंकि मेरे सभी सही प्रयासों के बाद भी बेमौसम गिरने वाले ओलों  पर मेरा नियंत्रण नही था, जिनके कारण इस पौधे की मृत्यु  हुई है। वस्तुतः तुम कितना भी प्रयास क्यों न करो, पर तुम उन्ही चीज़ों पर नियंत्रण रख पाओगे जो तुम्हारे हाथ में है। बाकि सब कुछ ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए ।
पार्थ ने पूछा - अगर सफलता निश्चति ही नही है, तो फिर कोशिश करने से क्या फायदा?
मगर इसका जबाब पाने से पहले जरा इस दरवाजे को खोल कर देखना। ऐसे कहते हुई आचार्य श्रीवास्त ने उसके दाई और स्थित दरवाजे की और इशारा किया ।
गुरु का इशारा पाते ही पार्थ ने वह दरवाजा खोला।
दरवाजा खोलते ही उसने देखा की उसके सामने बड़े बड़े टमाटरो का ढेर पड़ा था।
आचार्य ने कहा - टमाटर के कुछ पौधे मरे थे, सभी पौधे नही। अगर तुम लगातार सही चीजे करते रहो, तो सफलता की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन अगर तुम 1-2 बार में ही हर मन कर बैठ जाओ, तो तुम अपने जीवन की सभी संभावना को नकार देते हो, जिनमें से शायद कोई संभावना तुम्हारे जीवन में सोभाग्य का अवसर लेकर आती।
यह कथानक इसी और इशारा करता है की हमे जीवन में विफलताओं को ही अंत मान कर नही रुक जाना चाहिए, बल्कि निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
हमारे दिमाग में दो तत्व बहुत सक्रिय रहते है- सकारात्मक (positive) और नकारात्मक (Negative) तत्व।
जीवन में दुःख, कष्ट, संघर्ष व असफलताएँ से हर किसी का सामना होता रहता है।
लेकिन यदि थोड़ी हिम्मत जुटाई जाये, आशावादी सोच रखी जाए, सकारात्मकता अपनाई जाए और इनसे निपटने के लिए उचित प्रयास किया जाए तो हमें फिर कोई भी निराशा नही कर सकता।
हिम्मत न हारिए, आशावादी सोच के साथ जुटे रहिये।
निराशा स्वयं ही भाग जाएगी, टिक नही पाएगी।



 श्रम सफलता की कुंजी है । (The key to success is to Labour)