Wednesday 9 December 2015

अधीरता व अधैर्यता को निकट न आने दे ।(patience and impatience)

 



अधीरता व अधैर्यता को निकट न आने दे ।(patience and impatience)
 
धैर्य वह गुण है, जो हरेक के पास नहीं होता। यह एक आध्यात्मिक गुण है, आज कल हर जगह धैर्य की अधीरता (Impatience) दिखाई पड़ता है। दुनिया एक दौड़ में भागती हुई दिखती है, कोई किसी की प्रतीक्षा नहीं करना चाहता, कोई रुकना नहीं चाहता और धैर्य को बिलकुल धारण नहीं करना चाहता। धैर्य धारण करने के लिए समय व समझ की आवश्यकता होती है। आज सभी के पास इन दोनों की कमी हो गई है और इसलिए उन्हें धैर्य भी नहीं है। धैर्य न होने पर व्यक्ति हर काम जल्दबाजी में करता है। किसी भी कार्य को पर्याप्त समय नहीं दे पाता, जिसके कारण कार्य बिगड़ जाता है। धैर्य धारण करने का एक ही तरीका है की इसके महत्व को समझा जाए और इसे अपनाने का प्रयास किया जाए। 
 
यदि धैर्य न हो तो व्यक्ति यही चाहेगा कि उसे किसी भी तरह से उसका लक्ष्य हासिल हो जाए, चाहे इसके लिए उसे गलत मार्ग का ही चयन क्यों न करना पड़े और आज कल यही हो रहा है। लोग अपने इच्छित लक्ष्य को पाने के लिए प्रतीक्षा नहीं करना चाहते, अधिक मेहनत नहीं करना चाहते और किसी भी तरह शॉर्टकट का रास्ता खोजते रहते है । 

 यदि धैर्य है तो इच्छित लक्ष्य भी मिलता है और बदले में मिलता है- सुकून, अनुभव, सीख, और शांति।
धैर्य धारण करने की चीज़ है। इसे वही व्यक्ति धारण कर सकता है, जो समय के हर पल की कीमत समझता है,और हर कार्य को समय के साथ जीता है। जब व्यक्ति अपनी समस्या को थोडा और वक्त देने को तैयार नहीं होता तो क्रोध और चिंता जैसे नकारात्मक गुण पनपते है, जिसमे लिए गए निर्णय गलत होते है और जीवन नकारात्मकता के दुष्चक्र में फँस जाता है।


धैर्य के बहुत सारे लाभ है, जिन्हें धैर्य धारण करने वाले व्यक्तियों में देखा जा सकता है। यह एक जन्मजात गुण है, लेकिन इसे धारण करना, सीखा भी जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले उन परिस्थितियों की पहचान करें, जिनमें धैर्य रखना मुश्किल होता है। फिर उन परिस्थितियों का गहराई से अवलोकन करें और ऐसी परिस्थितियों में निर्णय लेने से पहले अपनी प्राथमिकताओं  पर विचार करें। 

इसके साथ ही अपनी सोच सकारात्मक रखें और इस बात पर विश्वास रखें कि जो चाहते है, उसे आज नहीं तो कल अंजाम दे ही देंगे। यदि ऐसा प्रतीत हो कि धैर्य रखना मुश्किल हो रहा है तो गहरी साँस ले और अपनी साँसों पर ध्यान केंद्रित करते हुए मन को शांत करें और ऐसी परिस्थिति में स्वयं को प्रतिक्रिया देने से रोकने का अभ्यास करें। 

  
धैर्य तभी टूटता है, जब मन अशांत व उतावला होता है। ऐसी परिस्थिति में लिया गया निर्णय भी सही नहीं होता।  क्योंकि अशांत मन में, गहराई से सोचने - समझने की क्षमता नहीं होती। इसलिए यह जरुरी है कि किसी भी तरह मन को शांत किया जाए और जरुरी निर्णय तभी लिए जाए, जब मन शांत व स्थिर हो। धैर्य वही व्यक्ति धारण कर सकता है, जो दूरदर्शी हो, जिसका मन शांत, स्थिर  हो व रचनात्मक हो।

ऐसा ही व्यक्ति धैर्य के समय की गई प्रतीक्षा का सही नियोजन कर पाता है। इसलिए हम सभी को धैर्य धारण करने की कला सीखनी चाहिए।

धैर्य के साथ हम सफलता हासिल करने में सक्षम है।


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