Thursday 7 July 2016

हिम्म्त और जिन्दगी

जिन्दगी के असली मजे उसके लिए नहीं है जो फूलों की   छाँह के नीचे खेलते और सोते है । बल्कि फूलों की छाँह के नीचे अगर जीवन का स्वाद छिपा है तो वह भी उन्ही के लिए है जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं जिनका कंठ सूखा हुआ, होंठ फटे हुए और सारा बहन पसीने से तर है । पानी में जो अमृत तत्व है, उसे वह जानता है जो धूप में खूब सूख चुका है वह नहीं जो रेगिस्तान में कभी पड़ा नहीं है ।

सुख देने वाली चीजें पहले भी थी और अब भी हैं । फर्क यह है कि जो सुखों का मूल्य पहले चुकाते हैं और उसके मजे बाद में लेते हैं, उन्हे स्वाद अधिक मिलती है जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है, उसके लिए आराम ही मौत है । जो लोग पाँव भीगने के खौफ से पानी से बचते रहते हैं समुद्र में डूब जीने का खतरा उन्ही के लिए है । लहरों में तैरने का जिन्हें अभ्यास है वे मोती लेकर बाहर आएँगे ।

भोजन का असली स्वाद उसी को मिलता है जो कुछ दिन बिना खाए भी रह सकता है । ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा', जीवन का भोग त्याग के साथ करो, यह केवल परमार्थ का ही उपदेश नहीं है क्योंकि संयम से भोग करने पर जीवन से जो आनंद प्राप्त होता है, वह निराभोगा बनकर भोगने से नहीं मिल पाता ।

बड़ी चीजें बड़े संकटों में विकास पाती है, बड़ी हस्तियाँ बड़ी मुसीबतों में पलकर दुनिया पर कब्जा करती है ।
अकबर ने तेरह साल की उम्र में अपने पिता के दुश्मन को परास्त कर दिया था जिनका एकमात्र कारण यह था कि अकबर का जन्म रेगिस्तान में हुआ था और वह भी उस समय जब उसके पिता के पास एक कस्तूरी को छोड़कर  और कोई दौलत नहीं थी ।

श्री विंस्टन चर्चिल ने कहा है कि जिन्दगी की सबसे बड़ी सिफत हिम्म्त है । आदमी के और सारे  गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते है ।

साहसी मनुष्य उन सपनों में भी रस लेता है जिन सपनों का कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं है । साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता, वह अपने विचारों में रंगा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है । झुंड में चलना और झुंड में चरना, यह भैंस या भेड़ का राम है । सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मगन रहता है ।

अर्नाल्ड बैनेट ने एक जगह लिखा है कि जो आदमी यह महसूस करता है कि किसी महान निश्चय के समय वह साहस से काम नहीं ले सका, जिन्दगी की चुनौती को कबूल नहीं कर सका, वह सुखी नहीं हो सकता । बड़े मौके पर साहस नहीं दिखाने वाली आदमी बराबर अपनी आत्मा के भीतर एक आवाज सुनता रहता है ।एक ऐसी आवाज जिसे वही सुन सकता है और जिसे वह रोक भी नहीं सकता । यह आवाज उसे बराबर कहती रहती है, तुम साहस नहीं दिखा सके, तुम कायर की तरह भाग खड़े हुए । सांसारिक अर्थ में जिसे हम सुख रहते हैं उसका ना मिलना, फिर भी इससे कहीं श्रेष्ठ है कि मरने के समय हम अपनी आत्मा से यह धिक्कार सुनें कि तुमसें हिम्मत की कमी थी कि तुमसें साहस का अभाव था, कि तुम ठीक वक्त पर जिन्दगी से भाग खड़े हुए । जिन्दगी को ठीक से जीना हमेशा जोखिम झेलना है और जो आदमी सकुशल जीने के लिए जोखिम का हर जगह पर घेरा डालता है वह अंतत: अपने ही घेरों के बीच कैद हो जाता है और जिन्दगी का कोई मजा उसे नहीं मिल पाता क्योंकि जोखिम से बचने की कोशिश में असर में उसने जिन्दगी को ही आने से रोक रखा है ।

जिन्दगी से अंत में हम उतना ही पाते है जितनी कि उसमें पूँजी लगाते है । यह पूँजी लगाना जिन्दगी के संकटों का सामना करना है, उसके उस पन्ने को उलट कर पढ़ना है जिसके सभी अक्षर फूलों से ही नहीं, कुछ अंगारों से भी लिखे गए है । जिन्दगी का भेद कुछ उसे ही मालूम है जो यह जानकर चलता है कि जिन्दगी कभी भी खत्म न होने वाली चीजें है ।

दुनिया में जितने भी मजे बिखर गए है, उनमें तुम्हारा भी हिस्सा है । वह चीज भी तुम्हारी हो सकता है जिसे तुम अपनी पहुँच के परे मानकर लौटे जा रहे हो ।

कामना का अंचल छोटा मत करो, जिन्दगी के फल को दोनों हाथों से दबाकर नीचेड़ो, रस की निर्झरी तुम्हारे बहाए भी बह सकती है ।

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